Tuesday, August 13, 2024

बेटे हैं कोई खिलौना नहीं

 जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।


भोजन जब स्वयं के पेट में जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खाएगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।


लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़कों का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।


अपनी इच्छा केवल घर की चहारदीवारी में उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन में कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की, उसे रखनी ही होगी।


घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनना भी गलत है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों की सी फटी निक्कर और छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।


जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।


संस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है। गाड़ी के दोनों पहियों में संस्कार की हवा चाहिए। एक भी पंचर हुआ तो जीवन डिस्टर्ब होगा।


नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर हैं जिनकी संस्कृति में कपड़े ही नहीं हैं। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें। कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिन पास कर सकता है, सभ्य इंसान को यह अधिकार नहीं है। उसे सभ्यता से बंद टॉयलेट का उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को सभ्य वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही होगा।


 विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन में मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें। 🙏🌹क्या शादी के बाद किसी दूसरे व्यक्ति से संबंध बनाना सही है?

इस दुनियां मे सिर्फ एक बात का ध्यान रखना चाहिए! कि यहां कुछ भी सही-गलत नही होता है।….सब कुछ निर्भर करता है आपके हालातों पर,तो ज्यादा आदर्शवाद के चक्कर में सब कुछ बर्बाद नहीं किया जाता है।


और रही बात संबंधो की तो सर्वप्रथम अपने दाम्पत्य जीवन को समझना चाहिएकि यदि आपका जीवन साथी किन्ही कारणों से आपको शारीरिक रूप से संतुष्ट कर पाने मे अक्षम है,तो आपको इस बात पर बड़े ही आराम से अपने साथी से विमर्श करना चाहिए।


और यदि वह आपके सुखों की परवाह करता/करती है तो कुछ विशेष परिस्थितियों मे ववो भले ही आपको खुले मन से अनुमति न दे परंतु इस बात का विरोध भी नही करेगा/करेगी।

तब आपकी जिम्मेदारी बनती है कि किसी एक ऐसे शख्स की खोज करें जो आपकी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो और साथ ही मानसिक रूप से भी परिपक्व हो और आपका भरोसेमंद शख्स हो।

जो आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा को भी अक्षुण्ण रखे।। अपने पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए यदि आप शारीरिक सुखों का भोग करते/कलती हैं तो इसमे कुछ भी गलत नही है बशर्ते वह शारीरिक सुख की पूर्ति किसी एक ही शख्स से पूरी हो रही हो,बहुतों से नही।


जिससे आपका पारिवारिक जीवन भी अनवरत चलता रहे और आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बनी रहे।

अगर आप इतना कुछ निर्वहन कर पा रहे हैं तो आपको शारीरिक सुख पा लेने में कोई बुराई नही है।।


आज भी अनगिनत लोगों के अवैध संबंध कहे जाने वाले संबंध, निजी संबंधों से ज्यादा प्रेम से निभ रहें हैं।

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जो समझदार होंगे, समझ गये होंगे... नहीं तो किसी दिन दूसरों के कारण या अपनी नादानियों के कारण,

अपनों के सामने खुद भी शर्मशार होंगे और दूसरों को भी करेंगे..!!


शादीशुदा जिंदगी में अवैध संबंध सदैव अपराध का कारण बनते हैं। आए दिन ऐसी खबरें आती हैं, जिसमें पत्नी अपने प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्याएं कर रही हैं, तो कहीं पति पर झूठे मुकदमे दर्ज करा रही हैं।

वजह सिर्फ एक ही होती है...

जो स्त्रियां प्रेमी संग मिलकर पति की हत्या करती हैं वो पति से छुटकारा भी चाहती है और उसके हिस्से की सम्पत्ति भी..!!

और पति को झूठे मुकदमों में फंसाने वाली स्त्रियां, ऐश तो अपने प्रेमी संग करना चाहती हैं मगर धन की पूर्ति गुजाराभत्ता के रूप में पति से करती हैं।


(( पोस्ट पर आपत्ति जताने से पहले ऐसे कानून का विरोध करिए जो शादीशुदा स्त्री को अवैध संबंध बनाने की छूट देते हैं, )) 

इन घरों में रहना मजबूरी है या शान।

 इन घरों में रहना मजबूरी है या शान। 

जब ये पुराने होकर गिर जायेंगे तो

 जमीन किस की रहेगी। हमारी या बिल्डर्स की


पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस के मकान में।  

9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  


मन गांव में ही रह गया, शरीर शहर का वासी है।  

ताज़ा बस, ख़बर यहाँ, तासीर बासी_बासी है।।  


दो जन दोनों कमाने वाले, बच्चों को कौन संभाले।  

टारगेट के पीछे भाग रहे हैं, तन को कर, बीमा के हवाले।।  


यारों का न संग रहा, न न्योता न व्यवहार।  

खुद के घर जाते हैं बन, जैसे रिश्तेदार।।  


कर बंटवारा एकड़ बेचा, वर्ग फीट के दरकार में।  

बिछड़े, पिछड़ा कह के, खो गए अगड़ों के कतार में।।  


शुरुवाती; मज़ा बहुत है, एकाकी; स्वप्न; संसार में।  

मुसीबत हमेशा हारा है, संगठिक संयुक्त परिवार में।।


मात, पिता न आने को राजी, गांव में नौकरी है कहां जी।

जिनके  पास  दोनों  है बंधुओं, उनका जीवन है शान में 


पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  

9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।