Tuesday, August 13, 2024

इन घरों में रहना मजबूरी है या शान।

 इन घरों में रहना मजबूरी है या शान। 

जब ये पुराने होकर गिर जायेंगे तो

 जमीन किस की रहेगी। हमारी या बिल्डर्स की


पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस के मकान में।  

9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।  


मन गांव में ही रह गया, शरीर शहर का वासी है।  

ताज़ा बस, ख़बर यहाँ, तासीर बासी_बासी है।।  


दो जन दोनों कमाने वाले, बच्चों को कौन संभाले।  

टारगेट के पीछे भाग रहे हैं, तन को कर, बीमा के हवाले।।  


यारों का न संग रहा, न न्योता न व्यवहार।  

खुद के घर जाते हैं बन, जैसे रिश्तेदार।।  


कर बंटवारा एकड़ बेचा, वर्ग फीट के दरकार में।  

बिछड़े, पिछड़ा कह के, खो गए अगड़ों के कतार में।।  


शुरुवाती; मज़ा बहुत है, एकाकी; स्वप्न; संसार में।  

मुसीबत हमेशा हारा है, संगठिक संयुक्त परिवार में।।


मात, पिता न आने को राजी, गांव में नौकरी है कहां जी।

जिनके  पास  दोनों  है बंधुओं, उनका जीवन है शान में 


पढ़े लिखें परिंदे कैद हैं, माचिस से मकान में।  

9 से 6 की ड्यूटी, और मानसिक थकान में।।

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